Saturday, March 23, 2019

क्या महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव को कन्हैया कुमार से डर लगता है?
इससे पहले माना जा रहा था कि महागठबंधन बेगूसराय सीट पर कन्हैया कुमार को मैदान में उतार सकती है या वो सीट उनके लिए छोड़ सकती है. हालांकि असल में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

जब राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में 2015 के बिहार फॉर्मूले पर विपक्षी एकता की बात चल रही हो, ऐसे में प्रोयगशाला का ही ढह जाना नुकसानदेह साबित हो सकता है. महीनों तक विपक्षी कुनबे में जोर आजमाइश के बाद बिहार की 40 सीटों का आपसी बंटवारा हुआ लेकिन इसमें सीपीआई के लिए कोई जगह नहीं है. यानी नौ फरवरी, 2016 के बाद जो कन्हैया कुमार जेएनयू से बाहर निकल बेजीपी विरोधी दलों की एकता के औजार बने अब वही अकेले पड़ गए हैं.

सीपीआई नेता सीताराम येचुरी के साथ जंतर मंतर से लेकर ममता दीदी के मंच तक विपक्षी एकता का पाठ पढ़ाने वाले तेजस्वी ने आखिर इतना बड़ा फैसला क्यों किया ?  क्या तेजस्वी यादव को  प्रखर वक्ता और युवाओं के बीच पैठ बना रहे कन्हैया कुमार से डर लगने लगा है?

कन्हैया कुमार वो पहले नेता हैं जिनकी उम्मीदवारी घोषित की गई.  सीपीआई उन्हें बेगूसराय से उतारने की तैयारी कर रही है.  कन्हैया बिहार के वो पहले उम्मीदवार हैं जिन्होंने अपना चुनाव प्रचार शुरू किया.

माना जा रहा था कि वाम दल महागठबंधन के हिस्सा रहेंगे और बेगूसराय सीपीआई के खाते में आएगी लेकिन सीट बंटवारे में लेफ्ट पार्टियों को लेफ्ट कर दिया गया. सिर्फ भाकपा माले का एक उम्मीदवार लड़ेगा वी भी राजद के कोटे से.

जेएनयू विवाद के बाद पहली बार बिहार आये कन्हैया कुमार को तब बिहार के सभी गैरभाजपाई दिग्गजों ने हाथों हाथ लिया था. कन्हैया ने भी सभी मोदी विरोधी नेताओ के दरवाजे-दरवाजे जाकर मत्था टेका. नीतीश भी तब मोदी विरोध के झंडाबरदार थे.

कन्हैया ने नीतीश कुमार के पैर छूए तो उन्होंने भी बिहार का बेटा कहकर आशीर्वाद दिया. कन्हैया लालू के घर गए. उनका भी आशीर्वाद लिया. तब तेजस्वी ने भी बड़ी आत्मीयता से गले लगाया, बगल में बिठाया लेकिन अंदरूनी दूरी बनाए रखी.

ये तय है कि बेगूसराय में महागठबंधन और एनडीए की लड़ाई में सीपीआई के लिए किसी उम्मीद की गुंजाइश बहुत कम रहेगी

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